Thursday, 27 December 2018

छोटी सी नैनीताल यात्रा

नैना देवी मंदिर दर्शन और आस पास की जगहे 

अप्रैल के महीने में मेरी मम्मी जी लाल कुआँ (उत्तराखंड) में थी । वही मेरे दीदी और जीजा जी भी रहते है । कुछ दिन बाद मम्मी जी को अपने घर (देवघर, झारखण्ड) वापस भी जाना था । इसी बिच, मेरी दीदी ने मुझसे कहा की मम्मी जी को नैना देवी मंदिर (नैनीताल) के दर्शन करा लाओ, अजमेर, पुष्कर और वैष्णो देवी तो हो ही आये हो, यहाँ भी दर्शन करवा लाओ, फिर पता नहीं कितने दिन के बाद इधर आना हो। दीदी को पहाड़ी रास्ते पसंद नहीं पड़ते और उनके जाने का मतलब होता है साथ जाने वालो को ज्यादा परेशानी। खैर, मुझे और क्या चाहिए था, घूमने का मौका वो भी जब घर वाले कह रहे हो, मैंने झट से हाँ कर दी और कह दिया की रविवार 8 अप्रैल को वह सुबह आ जाऊंगा और उसी रात वापस दिल्ली भी आ जाऊंगा। दीदी ने पूछा की कैसे आओगे। मैंने कह दिया एक दिन पहले तत्काल में टिकट कर के देखूंगा अगर हुआ तो ठीक, नहीं तो आनंद विहार से बस चलती है हल्द्वानी के लिए उससे आ जाऊंगा। 

अब दिल्ली से लाल कुआँ जाने के लिए बस और ट्रैन दोनों की सुविधा है लेकिन मुझे ट्रैन में ट्रेवल करना ज्यादा पसंद है बस के मुकाबले। दिल्ली से काठगोदाम मार्ग पे 3 ट्रैन रोजाना चलती है, सुबह में शताब्दी, दोपहर में उत्तर संपर्क क्रांति और रात में रानीखेत एक्सप्रेस (एक और ट्रैन आंनद विहार लालकुआं इंटरसिटी हैं लेकिन वो हफ्ते में 2 दिन ही चलती है)। मेरे लिए रानीखेत एक्सप्रेस बहुत सही ट्रैन है, रात में करीब 10 बजे पुरानी दिल्ली से खुलती है और लाल कुआँ सुबह 4 बजे के आस पास पहुँचा देती है। इससे मुझे ऑफिस में छुट्टी लेने की जरुरत नहीं पड़ी । शायद मेरी किस्मत अच्छी थी या उस दिन लोग काम थे, मुझे तत्काल में रानीखेत में इधर से जाने का टिकट मिल गया और अगले दिन वापसी में भी इसी ट्रैन में तत्काल में टिकट मिल गया और  इसकी खबर दीदी को भी दे दिया।

अब करीब 6 अप्रैल को, आदत से मज़बूर मैंने ऐसे ही नैनीताल का मौसम का हाल जानने के लिए नेट पे सर्च किया। अरे ये क्या, रविवार को तो 90 प्रतिशत बारिश होने की संभावना थी जिसका मतलब ये है की बारिश तो होनी ही है। मैंने झट से दीदी को फ़ोन से बताया तो उन्होंने कहा की दिन भर बारिश थोड़े ना होगी। थोड़ी बहुत बारिश से कोई दिक्कत नहीं  है। हर बार बिना बारिश के घूमे हो इस बार घूमने के साथ बारिश के भी मज़े ले लेना। मैंने भी कहा, ठीक है, अब जो होगा सो होगा, देखा जायेगा।

शनिवार की सुबह मैंने दो जोड़े कपडे अपने बैग में डाले और ऑफिस आ गया। शाम में ऑफिस से निकलने के बाद सीधा पुरानी  दिल्ली स्टेशन के तरफ रुख किया और करीब १ घंटे पहले वहाँ पहुंच गया। थोड़ी सी भूख भी लगी थी, हल्का फुल्का खाने के जब पूछताछ करी तो पता चला की ट्रैन अपने से समय से चल रही है। पुराणी दिल्ली स्टेशन पे 1 ही प्लेटफार्म के 2-2 नंबर है (जो लोग गए होंगे उन्हें अच्छे  से पता होगा) और प्लेटफार्म पे कुछ काम चल रहा था, जिसके कारण डिस्प्ले बोर्ड काम नहीं कर रहा था। आधे से ज्यादा लोग तो इस  दुविधा में थे की हम सही प्लेटफार्म पे खड़े है या नहीं। ट्रैन का समय तो हो गया लेकिन ट्रैन का कोई अता पता नहीं, तो लोगो की दुविधा और बढ़ गयी। करीब आधे घंटे लेट ट्रैन प्लेटफार्म पे आयी ।

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन 
ट्रैन आने के बाद सीधा अपने कोच के सीट पे चला गया और सोने की तैयारी करने लगा। टिकट मेरा स्लीपर क्लास का था, अपने फ़ोन में सुबह का अलार्म लगा के जैसा सोने ही वाला तभी कोच के अटेंडेंट और एक यात्री में बहस हो गयी। यात्री बिना रिजर्वेशन के स्लीपर डिब्बे में आ गए थे। ये तो आम बात हैं लेकिन कोई गर्म मिज़ाज़ का इंसान हो और दूसरा उचे आवाज़ से गली गलौज पे आ जाये तो फिर ये आम बात नहीं रहती। ट्रैन अभी स्टेशन पे ही थी और इस बहस को ख़त्म होने करीब बीस मिनट लगा। किनसे कहे की भैया आप शांत हो जाओ, कोई अपनी गलती माने तब ना। अंतिम में RPF के एक जवान ने बेटिकेट यात्री को निचे उतारा और ये मामला खत्म हुआ। अब ट्रैन खुल चुकी थी और मैं अपने सीट पे आराम से सो सकता था।

मोरादाबाद रेलवे स्टेशन 
आँख लगी ही थी की TTE साहब ने उठा दिया। टिकट दिखा के फिर जैसे तैसे सोया की रात में फिर से नींद खुल गयी, इस बार ठण्ड के कारण। भैया, अब आप ही बताओ की अप्रैल के महीने में कौन सोच सकता है की दिल्ली काठगोदाम मार्ग (मेरठ, अमरोहा, मुरादाबाद) में रात में ठण्ड भी लग सकती है। उठने  के बाद पता की इसका कारण इंद्रा देव है। शायद मेरी यात्रा पे कुछ ज्यादा ही मेहरबानी थी उनकी। करीब 3 बज रहे थे और ट्रैन थोड़ी लेट चल रही थी, लालकुआं पहुंचने में करीब डेढ़-दो घंटे थे। ठण्ड के कारण दुबारा सोने की हिम्मत ही नहीं हुई। करीब 5 बजे मैं लालकुआं स्टेशन पहुँचा, वहाँ से सीधा दीदी के यहाँ । मैंने सुबह 8 बजे लालकुआं से निकलने का सोचा था। वहाँ से नैनीताल करीब 2 घंटे का सफर है। रात में सही से नहीं सो पाने के कारण आँख लग गयी और 8 बजे नींद ही खुली।

हल्दी रोड स्टेशन के पास 
मेरी मम्मी पहले ही उठ चुकी थी और उन्हें सिर्फ कपडे बदलने थे। मुझे तो सुबह वाले सारे काम निपटने थे। 30 मिनट में मैं भी तैयार हो गया इतने में दीदी ने कहाँ की कुछ खा लो फिर निकलना। मैंने और मम्मी ने कुछ पराठे खाये और करीब 9 बजे से पहले हम निकल गए। यहाँ से मुझे हल्द्वानी जाना था और वहाँ से फिर शेयर टैक्सी से नैनीताल। लालकुआं स्टेशन के पास से हमे शेयर ऑटो मिल गया जो हमे हल्द्वानी उतार दिया (किराया 20 रुपया एक का) । मौसम सुबह से ही बदलो वाला था। हल्द्वानी में टैक्सी स्टैंड थोड़ा आगे हैं जिसके लिए मुझे फिर से शेयर ऑटो करना पड़ा (किराया 10 रुपया एक का)। 

टैक्सी स्टैंड पे उतारते ही टैक्सी वालो ने पूछा नैनीताल? हमने कहा हाँ। आप दोनों उस वाली गाड़ी में बैठ जाओ, ये गाड़ी थी मारुती आल्टो(किराया 100 रुपया एक का) । पीछे 1 सवारी पहले से ही थी तो हम आराम से पीछे बैठ गए। मुझे लगा शायद 4 या 5 लोग हो जायेंगे तो हमारे ड्राइवर साहब गाड़ी चला लेंगे, लेकिन पैसा किसे प्यारा नहीं होता। अचानक से एक दम्पति आ गया और मुझे आगे बैठना पड़ा और फिर एक और बंदा आ गया। अब जब मैँ आगे की सीट पे सेट हो रहा था इंद्रा देव अपने होने का एहसास दिलवाना शुरू कर दिए। अब पीछे 4 लोग थे, आगे ड्राइवर भाई साहब, बिच में मैं और एक बाँदा में साइड में। करीब एक घंटे से थोड़ा ज्यादा का समय लगता हैं हल्द्वानी से नैनीताल और मैंने भी एडजस्ट करना ही सही समझा।

अब हम रास्ते में थे और वर्षा रानी हमारे साथ मज़े लेते हुए अपने रंग दिखा रही थी। बारिश में सफर करना जितना सुखद एहसास है उतना ही डरावना भी है। हमारे ड्राइवर को भी पता नहीं किस चीज़ की जल्दी थी, काफी स्पीड में चला रहा था। बगल वाले भाई साहब से बातो बातो में पता चला की वो बहुत बड़े साइकिलिस्ट है और जो जन जागरण के लिए साइकिल चलते है। अभी ही महाराष्ट्र से वापस लौट के आ रहे थे और कुछ दिनों के लिए अपने घर जा रहे थे। पर्यावरण पे बहुत सारा ज्ञान भी मिला और इसके भविष्य को लेके काफी चिंतित भी थे।
रास्ते में कभी बारिश होती तो कभी रुक जाती। सुबह के पराठे मेरी मम्मी को हज़म नहीं हुए और उन्होंने उलटी कर दी। छोटी गाड़ी में हिचकोले ज्यादा लगते है और पहाड़ी यात्रा में ऐसा होता ही रहता है। पानी की बोतल से उन्होंने कुल्ला कर लिया लेकिन उनका मन थोड़ा बेचैन सा हो गया। मैं तो पहाड़ो में बारिश के मज़े लेना चाह रहा था लेकिन अब मेरा ध्यान माँ के ऊपर ज्यादा था।

करीब 10:30 के आस पास हम नैनीताल पहुँच गए। गाड़ी से उतारते ही आज नैनीताल बिलकुल अलग नज़र आ रहा था। बारिश और बादल ने इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए थे। आप भी कभी बारिश वाले मौसम में जा के देखिये, बिलकुल ही अलग आनंद की अनुभूति होती हैं।
बारिश अभी काफी हलकी हो रही थी। गाड़ी वाले को पैसे दिए और बस स्टैंड के निचे खड़े हो गए ताकि बारिश से बच सके । इतने में कुछ नैनीताल गाइड वाले हमारे पीछे लग गए। सर, आपको पूरा नैनीताल घुमा दूंगा इतने पैसे लगेंगे, ये वाला पैकेज देखिये, इसमें ये सब चीज़ है, इतने पैसे लगेंगे। मेरा मन तो था लेकिन मम्मी से पूछना जरुरी था। मम्मी ने कहा की मेरा मन सही नहीं लग रहा हैं, रहने दो, इतना नहीं घूमना।

नैनीताल का सुन्दर दृश्य 
वहाँ  के लोगों से पता चला की सुबह से बारिश हो ही रही हैं, बिच में 5-10 मिनट के लिए रूकती तो फिर चालू हो जाती। हमारे पास एक छाता भी थी। 10-15 मिनट के आराम के बाद मम्मी ने कहाँ चलो मंदिर चलते है, बारिश हलकी ही थी तो मैंने छाता खोल के मम्मी के ऊपर कर दिया जिससे बारिश की बूँद उनपे ना गिरे। बस स्टैंड के पास ही रिक्शा स्टैंड है जो आपको माल रोड के दूसरे तरफ उतार देते है, पिछले बार अनुभव काम कर रहा था। रिक्शा स्टैंड पे लोग नंबर से खड़े रहते हैं, जैसे कोई रिक्शा आता तो सबसे आगे नंबर वाला उसमे बैठ जाता। 4 रिक्क्षा के बाद हम भी बैठ गए। माल रोड का आनंद लेते हुए हम नैना देवी मंदिर की तरफ जा रहे थे। हलकी हलकी बारिश में इसका आनंद दुगुना था।

 नैना देवी मंदिर के पास वाले ग्राउंड से 
अब हम माल रोड के दूसरी तरफ उतरे और मंदिर की ओर चले। बारिश अब बंद हो चुकी थी, बदलो से घिरा आसमान आज कुछ अलग नज़र आ रहा था। मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा क्यूंकि इससे पहले बार जब भी आया था तो सूर्य देव से मुलाकात होती थी लेकिन आज इंद्रा देव की माया आपने चरम पे थी जो यहाँ की सुंदरता को नया आयाम दे रही थी। मंदिर के पास से पूजा की थाली ली जिसका मूल्य 50, 100 और 150 का था। मुझे लगा प्रसाद के साथ थाली भी दे रहे है तो मैंने यूँ ही कहा की बाद में थाली ले जाने में दिक्कत नहीं होगी? दुकानदार ने बड़े ही प्रेम भाव से कहा की ये आपकी सुविधा के लिए हैं और वापस आते वक़्त प्रसाद हम आपको कागज़ में दे देंगे (नैनीताल में पॉलिथीन पे प्रतिबन्ध हैं)।

नैनताल के दर्शनीय स्थल 
नैना देवी मंदिर के बारे में :
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी - देवता शिव के इस रौद्र - रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी - देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश - भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ - जहाँ पर शरीर के अंग किरे, वहाँ - वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे ; वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। (सोर्स)

नैना देवी मंदिर 
बारिश के कारण भीड़ नाम मात्र थी और हम दोनों ने बड़े आराम से पूजा करि। नैना देवी मंदिर से झील का नज़ारा गज़ब था और मैंने फोटो लेने में कोई कमी नहीं करि। मंदिर में सभी भगवन के दर्शन किये और साथ ही पहले तल पे 11 अवतारों के मूर्ति की भी। मंदिर में दर्शन करने के बाद माँ का मन अब सही हो गया था। बारिश के कारण पूरा फर्श गिला था, कही बैठ नहीं सकते थे इसलिए थोड़े समय बाद बहार आ गए। दुकानदार वाले को प्रसाद वाली थाली वापस करि और हमे प्रसाद कागज़ में मिल गया जिसे फिर हमने अपने बैग में रख लिया। चुकी अब हमारा मुख्य उद्देश्य खत्म हो चूका था और हमारे पास पूरा दिन भी (अब तो बारिश भी बंद हो चुकी थी) तो मेरा मन स्नो व्यू पॉइंट रोपवे से जाने का था।

प्रथम तल पे भगवन विष्णु के 11 अवतार 

नैना देवी मंदिर से नैनी झील 
 मैंने मम्मी से पूछा तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी। मंदिर से रोपवे टिकट बुकिंग काउंटर मुश्किल से २०० या ३०० मीटर दूर होगा। आज तो रोपवे मुझे और भी रोमांचित कर रहा था क्यूंकि थोड़ी दूर के बाद से रोपवे का बाकि का हिस्सा बदलो में ढका हुआ दिख रहा था। लेकिन यहाँ फिर से नैनीताल टूर करवाने वाले गाइड हमारे पीछे लग गए। उनकी नज़र भी अपने शिकार पे रहती है, मतलब वो बहुत अच्छे से समझ लेते है की कौन सा इंसान रोपवे पे जाने का इक्छुक है। वो मुझे बार बार अपना टूर पैकेज बता रहे और मैं सड़क से होते हुए रोपवे टिकट काउंटर की और बढ़ रहा था। अब मुझे एक बोर्ड दिखा जिसमे रोपवे का किराया लिखा हुआ था "आना जाना 230"।

टूर वाला : "सर, आप दो लोग हो, यहाँ रोपवे का किराया 460 लगेगा, हम आप दोनों को 800 में ये वाली जगह के साथ और भी 6 जगह घुमा
देंगे, ये एल्बम देखिये"
मैं : "नहीं भैया, आप बहुत ज्यादा बोल रहे हो। हम तो बस ऊपर जाके और फिर वापस आ जायेंगे, इतना नहीं घूमना है हमे"
टूर वाला : "अच्छा आप एक काम करो, आप 700  दे देना, सभी जगह घुमा दूंगा"
मैं: "अरे नहीं भैया, यहाँ मेरा 460 में काम चल जायेगा और बाकि कोई खास जगह है भी नहीं"
टूर वाला :"अच्छा आप 600  दे देना, इससे कम नहीं कर पाउँगा, 6 जगह घुमा के वापस यही पे छोड़ दूंगा आप लोगो को"
मैं : "अरे नहीं, भैया"
टूर वाला : "सर, 140 ही ज्यादा लग रहे है, ऐसे आप 1 जगह घूमोगे और हम आपको 6 जगह घूमना के ले आएंगे"
मैं : "अच्छा, ये बताओ की कितना समय लगेगा"
टूर वाला : "3 घंटे ज्यादा से ज्यादा और हम आपको यही वापस छोड़ देंगे। बारिश की वजह से आज सुबह से कुछ नहीं कमा पाया हूँ".
मैं : "गाड़ी कहाँ हैं आपकी और कितने लोग होंगे उसमे"
टूर वाला : "अभी 2 मिनट में आ जाएगी और सिर्फ आप दोनों ही है अभी तो"
मैं : "चलो ठीक है, गाड़ी बुलाओ अपनी"
टूर वाला :" जी, अभी बुलाता हूँ"

और थोड़ी देर में उसकी गाड़ी हमारे सामने थी, उसने ड्राइवर को समझा दिया की हमने कौन का पैकेज लिया है। हम गाड़ी में बैठ गए। ये वापस माल रोड वाले रास्ते से बढ़ रहा था (मंदिर से बस स्टैंड की तरफ)। मुझे थोड़ा डाउट हुआ की ये किधर ले जा रहा है लेकिन उससे पहले ही ड्राइवर ने मॉल रोड से बाये तरफ जाती हुई सड़क पे गाड़ी घुमा दी और उसके बाद शुरू हुआ चढ़ाई का सफर। मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा था की ऐसे रास्ते पे गाड़ी कैसे चढ़ सकती है लेकिन गाड़ी आगे बढ़ते जा रही थी। कभी बाये तरफ मुड़ती तो कभी दाये तरफ। धीरे धीरे नैनी झील निचे दिखने लगी।

15-20 मिनट की चढ़ाई के बाद हमे स्नो व्यू पॉइंट का पास गाड़ी वाले ने उतार दिया। उनसे कहा की कुछ खाना पीना है तो खा ले। मैंने गाड़ी का नंबर नोट किया और स्नो व्यू पॉइंट की तरफ गया। चुकी आज बारिश सुबह से हो रही थी तो बदलो ने अपना डेरा जमाया हुआ था। सिवाय बदलो के कुछ नज़र नहीं आया। आम दिनों में यहाँ से हिमालय की बर्फ से ढकी पहाड़ दीखते है लेकिन आज तो सिर्फ बदल ही दिख रहे थे। फिर भी उस सुन्दर घाटी के कुछ चित्र लिए और अपनी गाड़ी में आ गए। जाने में जितनी चढ़ाई थी उतरने में उतनी ही ढलान। अगर किसी गाड़ी का ब्रेक सही से काम नहीं करा तो उसका एक्सीडेंट होना निश्चित हैं।

स्नो व्यू पॉइंट से आज का नज़ारा 
यहाँ से आगे बढे तो गाड़ी नैनीताल व्यू पॉइंट पे गाड़ी रोकी। यहाँ से पूरा नैनीताल देखने का मज़ा ही कुछ और हैं। मौसम ठण्ड थी और हलकी बारिश में ज्यादा देर वहाँ रुक ना सके। वैसे भी नैनीताल व्यू पॉइंट कोई अलग से जगह नहीं हैं ये सड़क ही हैं और हमारी गाड़ी के जैसे ढेर सारी गाड़ी खड़ी थी, ज्यादा देर रुकने का मतलब जाम लगाना होता इसलिए आगे बढ़ चले। 

नैनीताल व्यू पॉइंट 
रास्ते में 20 सेकंड के लिए गाड़ी रोक के ड्राइवर ने हमे सूखाताल दिखाया और बताया की इस जगह 6 महीने पानी रहता हैं और 6 महीने सूखा। इसलिए इसका नाम सूखाताल हैं। क्या आपने ध्यान दिया, 20 सेकंड में एक पॉइंट कवर हो गया। ऐसा भी होता हैं, अगर बारिश नहीं हो रही होती तो शायद कुछ समय दिया जा सकता था।

15 सेकंड में सूखातल के दर्शन 

हमारी अगली मंज़िल थी "हवा गुफा"। इसके बारे में कहा जाता है की इसमें से सालो भर ठंडी हवा निकलती रहती है और AC की हवा भी इसके सामने कम है। थोड़ी देर में हम ठंडी हवा गुफा पे पहुँच गए। मैंने सोचा था की ये जमीन के अंदर होगी लेकिन ये तो पहाड़ो में 15 फ़ीट की उचाई पे थी, जाने के लिए रास्ता था लेकिन कुछ परिवार वालो ने पहले से अपना कब्ज़ा कर रखा था। अब ऐसा भी नहीं था आप चढ़ जाओ क्यूंकि निचे उतरने वालो को दिक्कत होती। थोड़ा इंतज़ार करना सही समझा। बगल में एक आदमी भुट्टा बेच रहा हैं, मैंने और मम्मी दोनों ने खाये और ड्राइवर को भी दिया। करीब 10 मिनट के इंतज़ार के बाद भी ऊपर दो लड़किया थी जो निचे आना जैसे भूल ही गयी थी। मम्मी को तो वैसे भी चढ़ने का मन नहीं था, मैंने भी सोचा फिर कभी और फिर आगे बढ़ चले।

ठंडी हवा गुफा और ये दोनों मोहतरमा निचे आने का नाम ही नहीं ले रही थी 
हमारा अलग पड़ाव था लवर्स पॉइंट। जब पैकेज में था तो क्या कर सकते थे, घूमने आये हैं तो घूम के ही जायेंगे। जगह तो काफी अच्छी है और नैनीताल के बेहतरीन दृश्य नज़र आते हैं। ये जगह सड़क से थोड़ी निचे और उतरने के लिए रास्ता भी हैं। चट्टानों के किनारे पे है ये जगह और दूसरे नज़रिये से देखा तो सुसाइड पॉइंट भी कह सकते हैं। कुछ खाने पिने की दूकान और घोडा चालक समिति का काउंटर भी था। घोड़े से घूमने के लिए नैनीताल के कुछ जगहों (टिफ़िन टॉप, टाइगर टॉप, लैण्ड एंड ) के रेट भी लिखे हुए थे। घुड़सवारी का मज़ा आप यहाँ से कर सकते है। थोड़ी देर वहाँ पे रुकने और फोटो लेने के बाद वापस गाड़ी में आ गए।
लवर्स पॉइंट

 लवर्स पॉइंट से
अब समय था रॉक क्लाइम्बिंग पॉइंट देखने का, लेकिन ड्राइवर ने यहाँ गाड़ी भी नहीं रोकी, और मुख्य सड़क से हमे इसकी जानकारी देते हुए आगे बढ़ चला। उसके बाद हम एको केव वाले रास्ते से होते हुए वापस रोपवे टिकट काउंटर के पास आ गए। गाड़ी ने जहाँ से शुरुवात करि वही पे खत्म भी। हमने ड्राइवर को पैसे दिए और ड्राइवर ने मुझे अपना कार्ड दे दिया, बोला अगली बार गाड़ी की जरुरत पड़े तो मुझे फ़ोन कर लेना। मैंने उससे ऐसे भी पूछा की होटल का भी देखते हो क्या, पहले तो मना किया फिर कहा जब आओगे तब देख लेंगे।

बिच कही रास्ते से 
करीब ढाई घण्टे में हमारी 6 पॉइंट यात्रा समाप्त हुई। अब करने को कुछ नहीं था तो मैंने मम्मी से पूछा बोटिंग करना है क्या? पता नहीं, मम्मी के मन में क्या आया, मम्मी ने मना कर दिया। वैसे घर से सोच के तो चला था की बोटिंग भी करेंगे लेकिन मम्मी के मना करने के बाद मेरा मन भी बदल गया। कुछ महीने पहले ही मैं अकेले नैनीताल आया था और बोटिंग के मज़े लिए थे तो मुझे अपने मन को समझने में ज्यादा देर नहीं लगी। अब हमे वापस लालकुआं आना था। किस्मत अच्छी थी, हमारा मूड बदलते ही वही पे एक शेयर्ड गाड़ी मिल गयी। अगर वहाँ नहीं मिलती तो हमे टैक्सी स्टैंड (बस स्टैंड के पास) आना पड़ता। कुछ सवारी उसमे पहले से थी तो बस हमारे बैठने भर की देर थी और हमारी वापसी शुरू।

नैनीताल से वापसी 
रास्ते में हमारे आगे एक उत्तराखंड परिवहन की बस चल रही थी। वो टनकपुर जा रही थी, बोर्ड पे तो यही लिखा हुआ था हल्द्वानी-टनकपुर, उस समय मुझे टनकपुर नाम कुछ जाना पहचाना लगा रहा था, शायद कोई फिल्म बनी थी, इसलिए एक फोटो ले ली। बाद में पता चला की माँ पूर्णागिरि मंदिर का रास्ता टनकपुर होते हुए जाता है। वैसे उस बस की रफ़्तार और चलने का तरीका गज़ब का था, बहुत देर तक हमे आगे निकलने नहीं दिया। उस समय मुझे एहसास हुआ की उत्तराखंड परिवहन से ड्राइवर कितनी अच्छी तरीके से पहाड़ो में गाड़ी चलते है। रास्ते में एक जगह रुक के चाय पी और कुछ पकोड़े खाये और फिर काठगोदाम होते हुए हल्द्वानी, फिर वहाँ से लालकुआं। रात में मेरी ट्रैन थी जिससे मैं वापस दिल्ली आ गया।

हल्द्वानी टनकपुर बस 


रात में लालकुआं जंक्शन रेलवे स्टेशन 
ये थी मेरी एक दिन की नैनीताल यात्रा।
समाप्त।

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