Friday, 28 December 2018

माँ वैष्णो देवी यात्रा

यात्रा की तैयारियां 

जय माता दी। माता वैष्णो देवी यात्रा।
चलो बुलावा आया है...
पवित्र प्राचीन गुफा। सोर्स: www.maavaishnodevi.org
वो कहते हैं ना की जबतक माता का बुलावा नहीं आता तब तक आप लाख कोशिश कर ले, दर्शन होना मुमकिन नहीं। और जब बुलाती हैं हर बाधा खत्म हो जाती हैं। इक्छा तो हमेशा से थी लेकिन ये नहीं था मार्च 2018 में दर्शन करने का मौका मिल जायेगा। 

थोड़ा अपने बारे में बता दूँ, मैं देवघर झारखण्ड से हूँ और पिछले कुछ सालो से दिल्ली में रह रहा हूँ। मेरी माता जी देवघर में रहती है। फरवरी महीने में माँ का फ़ोन आया की पहले अजमेर और पुष्कर जाना है फिर माता वैष्णो देवी के दर्शन भी करने हैं। अजमेर जाने का मुझे कोई शौक नहीं था लेकिन माँ ने पता नहीं कौन सी मन्नत मांगी हुई थी, और माँ की इक्छा का सम्मान तो करना ही था। वैष्णो देवी वाली यात्रा में सिर्फ मैं और मेरी माँ ही जा रहे थे। मैंने अपने परम मित्र से भी पूछा लेकिन ऑफिस के काम में व्यस्त होने के कारण उसे छुट्टी मिलना संभव नहीं था।

जब भी आप कटरा के लिए टिकट देखेंगे तो आपको हमेश वेटिंग लिस्ट ही दिखाई देगी या फिर RAC और गलती से किस्मत अच्छी रही तो कन्फर्म सीट मिल जाएगी। अगर पहले से ही कन्फर्म सीट चाहिए तो 3-4 महीने ही बुकिंग करा ले। IRCTC की वेबसाइट पे सारे हथकंडे आजमाए तब जा के होली के बाद वाले दिन में अजमेर का कन्फर्म टिकट बुक हुआ और फिर गुरुवार को 8 मार्च  को कटरा का कन्फर्म सीट मिल गया। ये ट्रैन थी जम्मू मेल जो रात में पुरानी दिल्ली से खुलती हैं और दोपहर में कटरा पहुँचा देती है। वापसी की टिकट मैंने रविवार शाम की राजधानी एक्सप्रेस में करवाई क्यूंकि सोमवार को ऑफिस जाना था और ये ट्रैन हमेशा समय से पहुँचा देती हैं। वैसे आपको एक बात और दूँ की दिल्ली कटरा रूट पे लगभग सभी ट्रैन समय से ही चलती हैं। चुकी मार्च महीने में कटरा में ठण्ड रहती हैं तो 3rd AC में टिकट किया और मेरी माँ अब सीनियर सिटीजन में आती है तो भारतीय रेल की तरफ से अलग से छूट भी मिल जाती हैं। AC डिब्बे में आपको अलग से गरम कड़पे या चादर ले जाने की जरुरत नहीं पड़ती और हम एक्स्ट्रा सामान से पहले ही छुटकारा चाह रहे थे।

हमारा कार्यक्रम
8 मार्च : दिल्ली से कटरा (जम्मू मेल)
9 मार्च : दोपहर में कटरा, शाम में चढ़ाई शुरू करना
10 मार्च : भवन/ भैरो बाबा मंदिर
11 मार्च : दोपहर में कटरा से जम्मूतवी आना, शाम में जम्मूतवी से दिल्ली (राजधानी एक्सप्रेस)

भवन। सोर्स: www.maavaishnodevi.org
इस यात्रा से पहले, कटरा के बारे में मेरे पास उतना ही ज्ञान था जितना किसी भी आम इंसान को होता है। मतलब वही की चढाई करनी पड़ती हैं, लोग पैदल, घोड़े, पालकी से जाते है। भवन में माता के दर्शन के बाद भैरो मंदिर का दर्शन करना अनिवार्य है और अर्द्धकुवारी माता गुफा है जहाँ दर्शन करने का सौभाग्य बहुत कम लोगो को ही मिल पता है। लेकिन अब तो मुझे खुद जाना था और मेरी माँ भी पहली बार ही जा रही थी तो पूरी जानकारी चाहिए थी। अपने मित्र माडली में मैंने हर किसी से पूछा और जो लोग जा चुके हैं उनसे परामर्श भी लिया। दिल की तसल्ली के लिए जितने ब्लॉग मिले सभी पढ़ डाले। जानकारी तो बहुत मिली लेकिन अपने आप को संतुस्ट कर पाना मुमकिन नहीं था। इसलिए, जहाँ से भी, जैसे भी जानकारी होती मैं उसे जानने की कोशिश करता। इंटरनेट पे देखते देखते माँ वैष्णो देवी ट्रस्ट की ऑफिसियल वेबसाइट मिली www.maavaishnodevi.org जो सबसे काम की वेबसाइट है।

थोड़ी जानकारी वेबसाइट के बारे में क्यूंकि ये ही एक आधिकारिक साइट हैं, बाकि किसी अन्य साइट से बुकिंग वैद्य नहीं हैं।

इस वेबसाइट से आप ऑनलाइन यात्रा पर्ची बनवा सकते हैं। जम्मू, कटरा, अर्धकुमारी और भवन के पास की होटल या डारमेट्री बुक कर सकते है। सुबह और संध्या की होने वाली आरती की बुकिंग भी कर सकते हैं। कटरा से सांझीछत की हेलीकाप्टर सेवा भी इसी वेबसाइट से बुक होती है। अब तो आप बैटरी कार सेवा भी इस वेबसाइट के जरिये बुक करते सकते है। साथ ही आप अपने लिए पूजा करवाना चाहते हैं तो उसकी बुकिंग भी इसी साइट से करवा सकते हैं। बुकिंग करने के लिए आपको अपना अकाउंट बनाना पड़ता हैं जिसमे आपकी जरुरी जानकारी जैसे ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर, नाम, पता भरना जरुरी होता हैं।

इस साइट पे बुकिंग करने की संख्या की सिमा भी हैं। एक महीने में अधिकतम 5 हेलीकाप्टर सीट, 1 कमरा या 5 डारमेट्री, 5 आरती और एक ससवप पूजन (5100 रूपए) एक आईडी के द्वारा बुक किया जा सकता हैं वो भी एक क्रेडिट/डेबिट कार्ड द्वारा। अगर आप धोखे या गलती से किसी एक कार्ड से सिमा से ज्यादा भुगतान करते हैं है तो आपकी बुकिंग कैंसिल भी हो सकती हैं।

बैटरी कार बुकिंग सेवा : एक बार आप 3 लोगो के लिए टिकट बुक कर सकते हैं जिनकी उम्र 50 या उससे ज्यादा हैं। एक टिकट पे 2 बच्चे जिनकी उम्र 5 साल से कम है उनको आप अपनी गोद में ले जा सकते हैं। प्रति व्यक्ति किराया 300 रूपए हैं और अगर आप इसे कैंसिल करना चाहते हैं तो सिर्फ ऑनलाइन ही कर सकते हैं लेकिन पूरा पैसा वापस नहीं मिलेगा (70 प्रतिशत ही वापस मिलेगा और बाकि 30 प्रतिशत प्रोसेसिंग फी के तौर पे काट लिया जायेगा)। बुक करने के लिए नाम, जेंडर, उम्र, आईडी कार्ड का नंबर और मोबाइल नंबर जरुरी हैं। जिस कार्ड से पेमेंट कर रहे हैं उस कार्ड को साथ ले जाना अनिवार्य हैं।

वापसी अपनी यात्रा पे
अब जैसे जैसे यात्रा के दिन नज़दीक आ रहे थे तो मेरे दिमाग में यात्रा कार्यक्रम बनने लगा था। कटरा से भवन करीब 13.5 किलोमीटर की दुरी हैं जिसे आप पैदल पूरी करते हैं जिसमे 3 से 7 घण्टे या उससे भी ज्यादा लग सकते हैं। ये आपकी क्षमता के ऊपर निर्भर करता हैं। कटरा की उचाई करीब 2500 फ़ीट हैं, अर्धकुमारी की 4800 फ़ीट और भवन की 5200 फ़ीट हैं मतलब ये की आपको अर्धकुमारी तक ज्यादा मेहनत करने की जरुरत हैं और उसके बाद चढ़ाई थोड़ी आसान होती हैं। सुबह शाम में आरती करीब 2 घंटे की होती हैं और उस समय सामान्य दर्शन बंद होते हैं इसलिए हम आरती के समय से पहले पहुँचना चाहते थे ताकि भवन के पास हमे इंतज़ार नहीं करना पड़े।

सबसे पहली तयारी: मैंने अपनी माँ से पूछा था की कैसे यात्रा करोगी तो माँ का उत्तर था पैदल, इसलिए मैंने और माँ दोनों ने करीब 20-25 दिन पहले से 7-8 किलोमीटर रोज पैदल चलने लगे थे ताकि हमे ज्यादा परेशानी ना हो।

अब इतना तो था की हम 13 किलोमीटर की चढ़ाई 7-8 घंटे में आराम से पूरी कर लेंगे। फिर मैंने 10 मार्च की सुबह की आरती (अटका दर्शन) के दो टिकट बुक कर ली जिसका शुल्क 1000 रूपए प्रति व्यक्ति हैं। हम 9 को दोपहर में पहुँच के शाम से चढ़ाई शुरू करने वाले थे तो 10 की सुबह वाली आरती में पहुँच सकते थे। चुकी हमे वहाँ 2 रात बितानी थी, मतलब कही ना कही रुकना ही था। अब मैं होटल या डारमेट्री देखने लगा उनकी ऑफिसियल वेबसाइट पे ही। मुझे अर्धकुमारी में होटल तो नहीं मिला लेकिन डारमेट्री मिला तो मैंने 2 डारमेट्री बुक कर लिए। श्राइन बोर्ड होटल/डारमेट्री सुबह 10 बजे से अगले दिन 10 तक मान्य होता हैं। 1 डारमेट्री का किराया 100 से 200 तक है। हमारी वापसी की ट्रैन जम्मू से शाम 7 बजे थी इसलिए मैंने जम्मू में भी 2 डारमेट्री बुक कर लिए। सोचा अगर इंतज़ार ही करना पड़ा तो आराम से बेड पे लेट के करेंगे।

अब हमारा कार्यक्रम बहुत हद तक तैयार हो चूका था।
08 मार्च को दिल्ली से कटरा
09 मार्च को दोपहर में कटरा पहुँचना और शाम से चढ़ाई शुरुवात करना
10 मार्च को सुबह आरती, उसके बाद भैरो मंदिर और अर्द्धकुवारी में रुकना
11 मार्च को समयानुसार कटरा से जम्मू (जम्मू में रुकने की वयवस्था) और शाम में जम्मू से दिल्ली की ट्रैन

एक दिक्कत अभी भी बानी हुई थी क्यूंकि हम दोपहर में कटरा पहुँचने वाले थे और चढ़ाई शाम से शुरू करने वाले थे, इसका मतलब हमे कोई होटल ढूँढना था जिसमे हम आराम से 5 से 6 घंटे बिताने थे। एक मित्र ने सलाह दी की वही जा के होटल देख लेना। चुकी हमे 24 घंटे होटल में रुकना तो नहीं था इसलिए पहले से कोई होटल बुक करना मुझे भी सही नहीं लग रहा था। मैंने कुछ दिन पहले ही OYO रूम का ऐप्प डाउनलोड किया था और बस देखने के लिए उसमे कटरा के होटल के ऑप्शन देखे थे। किराया 1000 से 2000 रूपए के बिच में आ रहा था इसलिए उससे बुक नहीं किया। कुछ दिन बाद उस ऐप्प पे एक ऑफर दिखा जिसमे मुझे कटरा स्टेशन के सामने एक होटल मिला और बुक करने के लिए मात्र 499 का भुगतान करना था। मैंने अपनी माँ से पूछा और एक दिन के लिए 499 में बुक कर लिया। अगर कही और भी रुकते तो 300-400 तो लगने ही थे, OYO का नाम काफी सुना था की कमरे साफ़ सुथरे रहते हैं, सर्विस अच्छी रहती है इसलिए एक दिन की बुकिंग कर ली। अब हमारा सारा कार्यक्रम तय हो गया था।

यात्रा पर्ची : वैष्णो देवी यात्रा के लिए सबसे जरुरी होती यात्रा पर्ची। इसे आप ऑनलाइन इनकी ऑफिसियल वेबसाइट से भी बुक कर सकते हैं जो पुरे दिन के लिए मान्य होता है या फिर काउंटर से करवा सकते हैं जो अगले 6 घंटो के लिए मान्य होता हैं। अगर आप उन 6 घण्टे में बाणगंगा चेक पोस्ट पार नहीं करते तो आपको दुबारा पर्ची बनवानी पड़ेगी। ये पर्ची एक तरीके से आपके लिए इन्शुरन्स का भी काम करती हैं और श्राइन बोर्ड को यात्रिओ की संख्या का आकलन करने में भी सुविधा होती हैं। जब तक आप बाणगंगा चेक पोस्ट से दुबारा बाहर नहीं आ जाते तब तक आपको ये पर्ची संभाल के रखनी होती हैं। यात्रा पर्ची बनवाने के लिए, एक काउंटर कटरा रेलवे स्टेशन पे ही हैं और दूसरा कटरा बस स्टैंड के पास हैं।

चुकी मैं पहले ही सरे चिंताओं से दूर रहना चाहता था इसलिए मैंने ऑनलाइन पर्ची बनाने की कोशिश भी करि लेकिन उनके फॉर्म में यात्री के नाम के साथ पिताजी का नाम भी डालना अनिवार्य हैं और उसकी एक आईडी भी चाहिए होती हैं। मेरे आईडी में तो पिताजी का नाम हैं लेकिन माताजी की आईडी में पिताजी के नाम के बदले पति का नाम है जो की साधारण सी बात हैं। लेकिन उनके फॉर्म में पिताजी का नाम डालना था साथ ही आईडी भी चाहिए थी। कुछ लोगो से सलाह भी लिया की आप पिताजी के नाम के जगह पति का नाम ही लिख दे, कोई परेशानी नहीं होती लेकिन अपने मन को समझा नहीं पाया इसलिए वही जा के काउंटर से पर्ची बनवाने की सोची। हमारा होटल भी स्टेशन के समीप ही मिल गया था इसलिए स्टेशन वाले काउंटर से यात्रा पर्ची बनवाना सही उपाय लगा मुझे।

रूट मैप । सोर्स: www.maavaishnodevi.org
जब ऑफिस में बताया की माँ को लेके माता के दर्शन करने जाना हैं तो ऑफिस से आराम से छुट्टी मिल गयी और ऑफिस वालो ने कुछ पैसे भी दिए वहां दान करने के लिए। ये तो आश्चर्य ही था की माता के दर्शन के लिए सभी काम बनते ही चले गए। अजमेर पुष्कर से वापस आने के बाद हमने कुछ गर्म कपड़ो की खरीदारी भी करि और थोड़े बहुत जरुरी दवाई (सर दर्द, उलटी, पेन किलर, मूव क्रीम, पेट ख़राब और बुखार) की भी। अब मुझे  यात्रा वाले दिन का इंतज़ार था।

खबर: भवन से भैरो बाबा मंदिर तक रोपवे की भी शुरुवात हो गयी है जिसका एक तरफ का किराया 100 रूपए हैं। ये सुविधा भी दिन में ही मिलेगी। जहाँ भवन की उचाई 5200 फ़ीट है वहीँ भैरो बाबा मंदिर की उचाई 6619 फ़ीट हैं और दुरी 3.5 किलोमीटर है। रोपवे की मदद से ये दुरी मात्र 3 मिनट में पूरी हो जाएगी।

इस पोस्ट में इतना ही, अगले भाग में माता के दर्शन को निकलेंगे।

वैष्णो देवी यात्रा के लिए कुछ जरुरी बातें :

  1. माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुवात करने से यात्रा पर्ची जरूर बनवा ले। ये यात्रा पर्ची निशुल्क हैं और आप इसे कटरा रेलवे स्टेशन काउंटर से या फिर कटरा बस स्टैंड स्तिथ काउंटर से बनवा सकते है। आप इसे ऑनलाइन भी बनवा सकते हैं।
  2. अगर आपने यात्रा पर्ची काउंटर से बनवायी हैं तो आपको 6 घंटे के भीतर बाणगंगा चेक पोस्ट पार करना पड़ेगा अन्यथा आपको फिर से यात्रा पर्ची बनवानी पड़ेगी। ऑनलाइन यात्रा पर्ची पुरे दिन के मान्य होती हैं।
  3. यात्रा पर्ची के लिए सभी व्यक्ति को लाइन में लगना होता है, पहले ग्रुप का हिसाब हुआ करता था लेकिन अब सभी को लाइन में लग में लग पर्ची बनवानी होती है। 
  4. बाणगंगा चेकपोस्ट 24 घंटे खुला रहता हैं और यात्रा दिन रात चलती रहती हैं।
  5. वैष्णो देवी मंदिर और पूरा रास्ता श्राइन बोर्ड द्वारा देखभाल की जाती हैं। श्राइन बोर्ड आपको रुकने और खाने की उत्तम वय्वस्ता प्रदान करती हैं।
  6. यदि आप जम्मू, कटरा, अर्धकुमारी, भवन और सांझी छत पे कमरा या डारमेट्री बुक करना चाहते है तो कटरा बस स्टैंड के पास बने निहारिका भवन से बुक करवा सकते हैं। ऑनलाइन भी बुक कर सकते है।
  7. अगर आप कमरा या डारमेट्री, आरती या पूजन ऑनलाइन बुक करते हैं तो उसकी रशीद के साथ, आईडी कार्ड और जिस डेबिट/क्रेडिट कार्ड से भुगतान किया था उसे साथ ले जाना अनिवार्य हैं अथवा आपकी बुकिंग रद्द की जा सकती हैं।
  8. रात में ठण्ड से बचने के लिए फ्री कम्बल की सुविधा भी हैं लेकिन आपको कम्बल लेने के लिए 500 रूपए सिक्योरिटी के तौर पे देंगे पड़ेंगे जो आपको कम्बल वापसी करने के बाद वापस मिल जायेंगे।
  9. पिट्ठू ,खच्चर या पालकी करने से पहले उनसे रेट तय कर ले ।उनका पहचान पत्र देखकर उनका पंजीकृत नंबर नोट कर लें।
  10. कटरा और रास्ते में प्रशाद की बहुत सारी दुकाने हैं लेकिन कोशिश करिये की श्राइन बोर्ड द्वारा दुकानों से ही प्रसाद ले क्यूंकि इनके दाम में बहुत फर्क पड़ जाता हैं। हो सके तो प्रशाद भवन के पास ही ले जिससे आप अतिरिक्त वजन से बच जायेंगे 
  11. यात्रा में कुछ भी नशीला पदार्थ की मनाही हैं तो कृपया ऐसा कुछ भी सामान ना ले जाये 
  12. कटरा में दूसरे राज्य के प्रीपेड सिम काम नहीं करते। पोस्टपेड सिम में कोई दिक्कत नहीं है। कटरा में लगभग आपको हर दूकान पे टूरिस्ट सिम मिल जायेंगे।
  13. यात्रा के दौरान खाने पिने की चिंता ना करे क्यूंकि आपको हर जगह खाने पिने की दूकान मिल जाएगी वो भी बिना प्याज़ और लहसुन वाला।
  14. अर्द्धकुवारी से करीब आधा किलोमीटर पहले नए रास्ते पे बैटरी कार की सुविधा भी हैं जिसे बच्चे और 50 साल से ऊपर के लोग जा सकते हैं। इसका टिकट आप ऑनलाइन या फिर वही अर्धकुंवारी में बनवा सकते हैं। ये सुविधा दिन में ही उपलब्ध हैं।
  15. रात्रि विश्राम के लिए होटल/डारमेट्री बुकिंग छोड़ के अन्य हॉल भी बने हुए हैं जिसमे आप निशुल्क आराम कर सकते हैं।  
  16. कटरा से भवन तक ले लिए अब तीन रास्ते हैं, आप अपनी सुविधा के अनुसार कोई सा भी रास्ता चुन सकते हैं।
  17. सामान रखने के लिए निशुल्क लॉकर सुविधा भी हैं। 
  18. भवन और अर्द्धकुवारी में दर्शन की लाइन में लगने से पहले आप अपना सारा सामान लॉकर रूम में रख दे। भवन में सिर्फ प्रसाद, पैसे और कागज़ जैसी चीज़े ही जा सकती हैं। 
  19. भवन का पास सालो भर ठण्ड भरा मौसम रहता हैं, इसलिए कुछ गर्म कपडे जरूर साथ रखे। सर्दियों में बर्फ़बारी भी होती है। 
  20. अगर आप परिवार के साथ पहली बार जा रहे हैं तो कोशिश करिये साथ चलने की।
  21. यात्रा के लिए आपको बहुत सारे मित्र और परिवार वाले कुछ पैसे देते है दान करने के लिए। आप श्राइन बोर्ड द्वारा किसी भी दान पात्र में  दाल सकते हैं या फिर इनके डोनेशन काउंटर (दान कक्ष) पे भी दे सकते हैं। डोनेशन काउंटर पे देने से आपको दान की रशीद भी मिल जाती हैं साथ ही कुछ प्रशाद भी प्राप्त होता हैं। दान कक्ष आपको भवन, सांझीछत, अर्द्धकुवारी और निहारिका भवन कटरा में मिल जाएगी और दान पात्र आपको पुरे रास्ते में।
  22. भवन और अर्द्धकुवारी में सुबह और शाम माता की आरती होती हैं और इस समय सामन्य दर्शन बंद रहते हैं।
  23. यात्रिओ की सुविधा के लिए जगह जगह में सुलभ शौचालय और नहाने के लिए बाण गंगा और भवन के पास सुविधा भी है।
  24. यात्री अगर पैदल चल रहे हैं तो अपनी क्षमता अनुसार चले, किसी से होड़ लगाने की जरुरत नहीं है।
  25. यात्रिओ के लिए चरण पादुका, अर्द्धकुवारी, सांझी छत, हिमकोटी और भवन के पास मेडिकल सेवा भी उपलब्ध हैं। 
  26. भवन बहुत ही पवित्र जगह है, कृपया इसकी मर्यादा बना रखे और इसे साफ़ सुथरा रखने में सहयोग करे।

Thursday, 27 December 2018

छोटी सी नैनीताल यात्रा

नैना देवी मंदिर दर्शन और आस पास की जगहे 

अप्रैल के महीने में मेरी मम्मी जी लाल कुआँ (उत्तराखंड) में थी । वही मेरे दीदी और जीजा जी भी रहते है । कुछ दिन बाद मम्मी जी को अपने घर (देवघर, झारखण्ड) वापस भी जाना था । इसी बिच, मेरी दीदी ने मुझसे कहा की मम्मी जी को नैना देवी मंदिर (नैनीताल) के दर्शन करा लाओ, अजमेर, पुष्कर और वैष्णो देवी तो हो ही आये हो, यहाँ भी दर्शन करवा लाओ, फिर पता नहीं कितने दिन के बाद इधर आना हो। दीदी को पहाड़ी रास्ते पसंद नहीं पड़ते और उनके जाने का मतलब होता है साथ जाने वालो को ज्यादा परेशानी। खैर, मुझे और क्या चाहिए था, घूमने का मौका वो भी जब घर वाले कह रहे हो, मैंने झट से हाँ कर दी और कह दिया की रविवार 8 अप्रैल को वह सुबह आ जाऊंगा और उसी रात वापस दिल्ली भी आ जाऊंगा। दीदी ने पूछा की कैसे आओगे। मैंने कह दिया एक दिन पहले तत्काल में टिकट कर के देखूंगा अगर हुआ तो ठीक, नहीं तो आनंद विहार से बस चलती है हल्द्वानी के लिए उससे आ जाऊंगा। 

अब दिल्ली से लाल कुआँ जाने के लिए बस और ट्रैन दोनों की सुविधा है लेकिन मुझे ट्रैन में ट्रेवल करना ज्यादा पसंद है बस के मुकाबले। दिल्ली से काठगोदाम मार्ग पे 3 ट्रैन रोजाना चलती है, सुबह में शताब्दी, दोपहर में उत्तर संपर्क क्रांति और रात में रानीखेत एक्सप्रेस (एक और ट्रैन आंनद विहार लालकुआं इंटरसिटी हैं लेकिन वो हफ्ते में 2 दिन ही चलती है)। मेरे लिए रानीखेत एक्सप्रेस बहुत सही ट्रैन है, रात में करीब 10 बजे पुरानी दिल्ली से खुलती है और लाल कुआँ सुबह 4 बजे के आस पास पहुँचा देती है। इससे मुझे ऑफिस में छुट्टी लेने की जरुरत नहीं पड़ी । शायद मेरी किस्मत अच्छी थी या उस दिन लोग काम थे, मुझे तत्काल में रानीखेत में इधर से जाने का टिकट मिल गया और अगले दिन वापसी में भी इसी ट्रैन में तत्काल में टिकट मिल गया और  इसकी खबर दीदी को भी दे दिया।

अब करीब 6 अप्रैल को, आदत से मज़बूर मैंने ऐसे ही नैनीताल का मौसम का हाल जानने के लिए नेट पे सर्च किया। अरे ये क्या, रविवार को तो 90 प्रतिशत बारिश होने की संभावना थी जिसका मतलब ये है की बारिश तो होनी ही है। मैंने झट से दीदी को फ़ोन से बताया तो उन्होंने कहा की दिन भर बारिश थोड़े ना होगी। थोड़ी बहुत बारिश से कोई दिक्कत नहीं  है। हर बार बिना बारिश के घूमे हो इस बार घूमने के साथ बारिश के भी मज़े ले लेना। मैंने भी कहा, ठीक है, अब जो होगा सो होगा, देखा जायेगा।

शनिवार की सुबह मैंने दो जोड़े कपडे अपने बैग में डाले और ऑफिस आ गया। शाम में ऑफिस से निकलने के बाद सीधा पुरानी  दिल्ली स्टेशन के तरफ रुख किया और करीब १ घंटे पहले वहाँ पहुंच गया। थोड़ी सी भूख भी लगी थी, हल्का फुल्का खाने के जब पूछताछ करी तो पता चला की ट्रैन अपने से समय से चल रही है। पुराणी दिल्ली स्टेशन पे 1 ही प्लेटफार्म के 2-2 नंबर है (जो लोग गए होंगे उन्हें अच्छे  से पता होगा) और प्लेटफार्म पे कुछ काम चल रहा था, जिसके कारण डिस्प्ले बोर्ड काम नहीं कर रहा था। आधे से ज्यादा लोग तो इस  दुविधा में थे की हम सही प्लेटफार्म पे खड़े है या नहीं। ट्रैन का समय तो हो गया लेकिन ट्रैन का कोई अता पता नहीं, तो लोगो की दुविधा और बढ़ गयी। करीब आधे घंटे लेट ट्रैन प्लेटफार्म पे आयी ।

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन 
ट्रैन आने के बाद सीधा अपने कोच के सीट पे चला गया और सोने की तैयारी करने लगा। टिकट मेरा स्लीपर क्लास का था, अपने फ़ोन में सुबह का अलार्म लगा के जैसा सोने ही वाला तभी कोच के अटेंडेंट और एक यात्री में बहस हो गयी। यात्री बिना रिजर्वेशन के स्लीपर डिब्बे में आ गए थे। ये तो आम बात हैं लेकिन कोई गर्म मिज़ाज़ का इंसान हो और दूसरा उचे आवाज़ से गली गलौज पे आ जाये तो फिर ये आम बात नहीं रहती। ट्रैन अभी स्टेशन पे ही थी और इस बहस को ख़त्म होने करीब बीस मिनट लगा। किनसे कहे की भैया आप शांत हो जाओ, कोई अपनी गलती माने तब ना। अंतिम में RPF के एक जवान ने बेटिकेट यात्री को निचे उतारा और ये मामला खत्म हुआ। अब ट्रैन खुल चुकी थी और मैं अपने सीट पे आराम से सो सकता था।

मोरादाबाद रेलवे स्टेशन 
आँख लगी ही थी की TTE साहब ने उठा दिया। टिकट दिखा के फिर जैसे तैसे सोया की रात में फिर से नींद खुल गयी, इस बार ठण्ड के कारण। भैया, अब आप ही बताओ की अप्रैल के महीने में कौन सोच सकता है की दिल्ली काठगोदाम मार्ग (मेरठ, अमरोहा, मुरादाबाद) में रात में ठण्ड भी लग सकती है। उठने  के बाद पता की इसका कारण इंद्रा देव है। शायद मेरी यात्रा पे कुछ ज्यादा ही मेहरबानी थी उनकी। करीब 3 बज रहे थे और ट्रैन थोड़ी लेट चल रही थी, लालकुआं पहुंचने में करीब डेढ़-दो घंटे थे। ठण्ड के कारण दुबारा सोने की हिम्मत ही नहीं हुई। करीब 5 बजे मैं लालकुआं स्टेशन पहुँचा, वहाँ से सीधा दीदी के यहाँ । मैंने सुबह 8 बजे लालकुआं से निकलने का सोचा था। वहाँ से नैनीताल करीब 2 घंटे का सफर है। रात में सही से नहीं सो पाने के कारण आँख लग गयी और 8 बजे नींद ही खुली।

हल्दी रोड स्टेशन के पास 
मेरी मम्मी पहले ही उठ चुकी थी और उन्हें सिर्फ कपडे बदलने थे। मुझे तो सुबह वाले सारे काम निपटने थे। 30 मिनट में मैं भी तैयार हो गया इतने में दीदी ने कहाँ की कुछ खा लो फिर निकलना। मैंने और मम्मी ने कुछ पराठे खाये और करीब 9 बजे से पहले हम निकल गए। यहाँ से मुझे हल्द्वानी जाना था और वहाँ से फिर शेयर टैक्सी से नैनीताल। लालकुआं स्टेशन के पास से हमे शेयर ऑटो मिल गया जो हमे हल्द्वानी उतार दिया (किराया 20 रुपया एक का) । मौसम सुबह से ही बदलो वाला था। हल्द्वानी में टैक्सी स्टैंड थोड़ा आगे हैं जिसके लिए मुझे फिर से शेयर ऑटो करना पड़ा (किराया 10 रुपया एक का)। 

टैक्सी स्टैंड पे उतारते ही टैक्सी वालो ने पूछा नैनीताल? हमने कहा हाँ। आप दोनों उस वाली गाड़ी में बैठ जाओ, ये गाड़ी थी मारुती आल्टो(किराया 100 रुपया एक का) । पीछे 1 सवारी पहले से ही थी तो हम आराम से पीछे बैठ गए। मुझे लगा शायद 4 या 5 लोग हो जायेंगे तो हमारे ड्राइवर साहब गाड़ी चला लेंगे, लेकिन पैसा किसे प्यारा नहीं होता। अचानक से एक दम्पति आ गया और मुझे आगे बैठना पड़ा और फिर एक और बंदा आ गया। अब जब मैँ आगे की सीट पे सेट हो रहा था इंद्रा देव अपने होने का एहसास दिलवाना शुरू कर दिए। अब पीछे 4 लोग थे, आगे ड्राइवर भाई साहब, बिच में मैं और एक बाँदा में साइड में। करीब एक घंटे से थोड़ा ज्यादा का समय लगता हैं हल्द्वानी से नैनीताल और मैंने भी एडजस्ट करना ही सही समझा।

अब हम रास्ते में थे और वर्षा रानी हमारे साथ मज़े लेते हुए अपने रंग दिखा रही थी। बारिश में सफर करना जितना सुखद एहसास है उतना ही डरावना भी है। हमारे ड्राइवर को भी पता नहीं किस चीज़ की जल्दी थी, काफी स्पीड में चला रहा था। बगल वाले भाई साहब से बातो बातो में पता चला की वो बहुत बड़े साइकिलिस्ट है और जो जन जागरण के लिए साइकिल चलते है। अभी ही महाराष्ट्र से वापस लौट के आ रहे थे और कुछ दिनों के लिए अपने घर जा रहे थे। पर्यावरण पे बहुत सारा ज्ञान भी मिला और इसके भविष्य को लेके काफी चिंतित भी थे।
रास्ते में कभी बारिश होती तो कभी रुक जाती। सुबह के पराठे मेरी मम्मी को हज़म नहीं हुए और उन्होंने उलटी कर दी। छोटी गाड़ी में हिचकोले ज्यादा लगते है और पहाड़ी यात्रा में ऐसा होता ही रहता है। पानी की बोतल से उन्होंने कुल्ला कर लिया लेकिन उनका मन थोड़ा बेचैन सा हो गया। मैं तो पहाड़ो में बारिश के मज़े लेना चाह रहा था लेकिन अब मेरा ध्यान माँ के ऊपर ज्यादा था।

करीब 10:30 के आस पास हम नैनीताल पहुँच गए। गाड़ी से उतारते ही आज नैनीताल बिलकुल अलग नज़र आ रहा था। बारिश और बादल ने इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए थे। आप भी कभी बारिश वाले मौसम में जा के देखिये, बिलकुल ही अलग आनंद की अनुभूति होती हैं।
बारिश अभी काफी हलकी हो रही थी। गाड़ी वाले को पैसे दिए और बस स्टैंड के निचे खड़े हो गए ताकि बारिश से बच सके । इतने में कुछ नैनीताल गाइड वाले हमारे पीछे लग गए। सर, आपको पूरा नैनीताल घुमा दूंगा इतने पैसे लगेंगे, ये वाला पैकेज देखिये, इसमें ये सब चीज़ है, इतने पैसे लगेंगे। मेरा मन तो था लेकिन मम्मी से पूछना जरुरी था। मम्मी ने कहा की मेरा मन सही नहीं लग रहा हैं, रहने दो, इतना नहीं घूमना।

नैनीताल का सुन्दर दृश्य 
वहाँ  के लोगों से पता चला की सुबह से बारिश हो ही रही हैं, बिच में 5-10 मिनट के लिए रूकती तो फिर चालू हो जाती। हमारे पास एक छाता भी थी। 10-15 मिनट के आराम के बाद मम्मी ने कहाँ चलो मंदिर चलते है, बारिश हलकी ही थी तो मैंने छाता खोल के मम्मी के ऊपर कर दिया जिससे बारिश की बूँद उनपे ना गिरे। बस स्टैंड के पास ही रिक्शा स्टैंड है जो आपको माल रोड के दूसरे तरफ उतार देते है, पिछले बार अनुभव काम कर रहा था। रिक्शा स्टैंड पे लोग नंबर से खड़े रहते हैं, जैसे कोई रिक्शा आता तो सबसे आगे नंबर वाला उसमे बैठ जाता। 4 रिक्क्षा के बाद हम भी बैठ गए। माल रोड का आनंद लेते हुए हम नैना देवी मंदिर की तरफ जा रहे थे। हलकी हलकी बारिश में इसका आनंद दुगुना था।

 नैना देवी मंदिर के पास वाले ग्राउंड से 
अब हम माल रोड के दूसरी तरफ उतरे और मंदिर की ओर चले। बारिश अब बंद हो चुकी थी, बदलो से घिरा आसमान आज कुछ अलग नज़र आ रहा था। मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा क्यूंकि इससे पहले बार जब भी आया था तो सूर्य देव से मुलाकात होती थी लेकिन आज इंद्रा देव की माया आपने चरम पे थी जो यहाँ की सुंदरता को नया आयाम दे रही थी। मंदिर के पास से पूजा की थाली ली जिसका मूल्य 50, 100 और 150 का था। मुझे लगा प्रसाद के साथ थाली भी दे रहे है तो मैंने यूँ ही कहा की बाद में थाली ले जाने में दिक्कत नहीं होगी? दुकानदार ने बड़े ही प्रेम भाव से कहा की ये आपकी सुविधा के लिए हैं और वापस आते वक़्त प्रसाद हम आपको कागज़ में दे देंगे (नैनीताल में पॉलिथीन पे प्रतिबन्ध हैं)।

नैनताल के दर्शनीय स्थल 
नैना देवी मंदिर के बारे में :
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी - देवता शिव के इस रौद्र - रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी - देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश - भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ - जहाँ पर शरीर के अंग किरे, वहाँ - वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे ; वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। (सोर्स)

नैना देवी मंदिर 
बारिश के कारण भीड़ नाम मात्र थी और हम दोनों ने बड़े आराम से पूजा करि। नैना देवी मंदिर से झील का नज़ारा गज़ब था और मैंने फोटो लेने में कोई कमी नहीं करि। मंदिर में सभी भगवन के दर्शन किये और साथ ही पहले तल पे 11 अवतारों के मूर्ति की भी। मंदिर में दर्शन करने के बाद माँ का मन अब सही हो गया था। बारिश के कारण पूरा फर्श गिला था, कही बैठ नहीं सकते थे इसलिए थोड़े समय बाद बहार आ गए। दुकानदार वाले को प्रसाद वाली थाली वापस करि और हमे प्रसाद कागज़ में मिल गया जिसे फिर हमने अपने बैग में रख लिया। चुकी अब हमारा मुख्य उद्देश्य खत्म हो चूका था और हमारे पास पूरा दिन भी (अब तो बारिश भी बंद हो चुकी थी) तो मेरा मन स्नो व्यू पॉइंट रोपवे से जाने का था।

प्रथम तल पे भगवन विष्णु के 11 अवतार 

नैना देवी मंदिर से नैनी झील 
 मैंने मम्मी से पूछा तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी। मंदिर से रोपवे टिकट बुकिंग काउंटर मुश्किल से २०० या ३०० मीटर दूर होगा। आज तो रोपवे मुझे और भी रोमांचित कर रहा था क्यूंकि थोड़ी दूर के बाद से रोपवे का बाकि का हिस्सा बदलो में ढका हुआ दिख रहा था। लेकिन यहाँ फिर से नैनीताल टूर करवाने वाले गाइड हमारे पीछे लग गए। उनकी नज़र भी अपने शिकार पे रहती है, मतलब वो बहुत अच्छे से समझ लेते है की कौन सा इंसान रोपवे पे जाने का इक्छुक है। वो मुझे बार बार अपना टूर पैकेज बता रहे और मैं सड़क से होते हुए रोपवे टिकट काउंटर की और बढ़ रहा था। अब मुझे एक बोर्ड दिखा जिसमे रोपवे का किराया लिखा हुआ था "आना जाना 230"।

टूर वाला : "सर, आप दो लोग हो, यहाँ रोपवे का किराया 460 लगेगा, हम आप दोनों को 800 में ये वाली जगह के साथ और भी 6 जगह घुमा
देंगे, ये एल्बम देखिये"
मैं : "नहीं भैया, आप बहुत ज्यादा बोल रहे हो। हम तो बस ऊपर जाके और फिर वापस आ जायेंगे, इतना नहीं घूमना है हमे"
टूर वाला : "अच्छा आप एक काम करो, आप 700  दे देना, सभी जगह घुमा दूंगा"
मैं: "अरे नहीं भैया, यहाँ मेरा 460 में काम चल जायेगा और बाकि कोई खास जगह है भी नहीं"
टूर वाला :"अच्छा आप 600  दे देना, इससे कम नहीं कर पाउँगा, 6 जगह घुमा के वापस यही पे छोड़ दूंगा आप लोगो को"
मैं : "अरे नहीं, भैया"
टूर वाला : "सर, 140 ही ज्यादा लग रहे है, ऐसे आप 1 जगह घूमोगे और हम आपको 6 जगह घूमना के ले आएंगे"
मैं : "अच्छा, ये बताओ की कितना समय लगेगा"
टूर वाला : "3 घंटे ज्यादा से ज्यादा और हम आपको यही वापस छोड़ देंगे। बारिश की वजह से आज सुबह से कुछ नहीं कमा पाया हूँ".
मैं : "गाड़ी कहाँ हैं आपकी और कितने लोग होंगे उसमे"
टूर वाला : "अभी 2 मिनट में आ जाएगी और सिर्फ आप दोनों ही है अभी तो"
मैं : "चलो ठीक है, गाड़ी बुलाओ अपनी"
टूर वाला :" जी, अभी बुलाता हूँ"

और थोड़ी देर में उसकी गाड़ी हमारे सामने थी, उसने ड्राइवर को समझा दिया की हमने कौन का पैकेज लिया है। हम गाड़ी में बैठ गए। ये वापस माल रोड वाले रास्ते से बढ़ रहा था (मंदिर से बस स्टैंड की तरफ)। मुझे थोड़ा डाउट हुआ की ये किधर ले जा रहा है लेकिन उससे पहले ही ड्राइवर ने मॉल रोड से बाये तरफ जाती हुई सड़क पे गाड़ी घुमा दी और उसके बाद शुरू हुआ चढ़ाई का सफर। मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा था की ऐसे रास्ते पे गाड़ी कैसे चढ़ सकती है लेकिन गाड़ी आगे बढ़ते जा रही थी। कभी बाये तरफ मुड़ती तो कभी दाये तरफ। धीरे धीरे नैनी झील निचे दिखने लगी।

15-20 मिनट की चढ़ाई के बाद हमे स्नो व्यू पॉइंट का पास गाड़ी वाले ने उतार दिया। उनसे कहा की कुछ खाना पीना है तो खा ले। मैंने गाड़ी का नंबर नोट किया और स्नो व्यू पॉइंट की तरफ गया। चुकी आज बारिश सुबह से हो रही थी तो बदलो ने अपना डेरा जमाया हुआ था। सिवाय बदलो के कुछ नज़र नहीं आया। आम दिनों में यहाँ से हिमालय की बर्फ से ढकी पहाड़ दीखते है लेकिन आज तो सिर्फ बदल ही दिख रहे थे। फिर भी उस सुन्दर घाटी के कुछ चित्र लिए और अपनी गाड़ी में आ गए। जाने में जितनी चढ़ाई थी उतरने में उतनी ही ढलान। अगर किसी गाड़ी का ब्रेक सही से काम नहीं करा तो उसका एक्सीडेंट होना निश्चित हैं।

स्नो व्यू पॉइंट से आज का नज़ारा 
यहाँ से आगे बढे तो गाड़ी नैनीताल व्यू पॉइंट पे गाड़ी रोकी। यहाँ से पूरा नैनीताल देखने का मज़ा ही कुछ और हैं। मौसम ठण्ड थी और हलकी बारिश में ज्यादा देर वहाँ रुक ना सके। वैसे भी नैनीताल व्यू पॉइंट कोई अलग से जगह नहीं हैं ये सड़क ही हैं और हमारी गाड़ी के जैसे ढेर सारी गाड़ी खड़ी थी, ज्यादा देर रुकने का मतलब जाम लगाना होता इसलिए आगे बढ़ चले। 

नैनीताल व्यू पॉइंट 
रास्ते में 20 सेकंड के लिए गाड़ी रोक के ड्राइवर ने हमे सूखाताल दिखाया और बताया की इस जगह 6 महीने पानी रहता हैं और 6 महीने सूखा। इसलिए इसका नाम सूखाताल हैं। क्या आपने ध्यान दिया, 20 सेकंड में एक पॉइंट कवर हो गया। ऐसा भी होता हैं, अगर बारिश नहीं हो रही होती तो शायद कुछ समय दिया जा सकता था।

15 सेकंड में सूखातल के दर्शन 

हमारी अगली मंज़िल थी "हवा गुफा"। इसके बारे में कहा जाता है की इसमें से सालो भर ठंडी हवा निकलती रहती है और AC की हवा भी इसके सामने कम है। थोड़ी देर में हम ठंडी हवा गुफा पे पहुँच गए। मैंने सोचा था की ये जमीन के अंदर होगी लेकिन ये तो पहाड़ो में 15 फ़ीट की उचाई पे थी, जाने के लिए रास्ता था लेकिन कुछ परिवार वालो ने पहले से अपना कब्ज़ा कर रखा था। अब ऐसा भी नहीं था आप चढ़ जाओ क्यूंकि निचे उतरने वालो को दिक्कत होती। थोड़ा इंतज़ार करना सही समझा। बगल में एक आदमी भुट्टा बेच रहा हैं, मैंने और मम्मी दोनों ने खाये और ड्राइवर को भी दिया। करीब 10 मिनट के इंतज़ार के बाद भी ऊपर दो लड़किया थी जो निचे आना जैसे भूल ही गयी थी। मम्मी को तो वैसे भी चढ़ने का मन नहीं था, मैंने भी सोचा फिर कभी और फिर आगे बढ़ चले।

ठंडी हवा गुफा और ये दोनों मोहतरमा निचे आने का नाम ही नहीं ले रही थी 
हमारा अलग पड़ाव था लवर्स पॉइंट। जब पैकेज में था तो क्या कर सकते थे, घूमने आये हैं तो घूम के ही जायेंगे। जगह तो काफी अच्छी है और नैनीताल के बेहतरीन दृश्य नज़र आते हैं। ये जगह सड़क से थोड़ी निचे और उतरने के लिए रास्ता भी हैं। चट्टानों के किनारे पे है ये जगह और दूसरे नज़रिये से देखा तो सुसाइड पॉइंट भी कह सकते हैं। कुछ खाने पिने की दूकान और घोडा चालक समिति का काउंटर भी था। घोड़े से घूमने के लिए नैनीताल के कुछ जगहों (टिफ़िन टॉप, टाइगर टॉप, लैण्ड एंड ) के रेट भी लिखे हुए थे। घुड़सवारी का मज़ा आप यहाँ से कर सकते है। थोड़ी देर वहाँ पे रुकने और फोटो लेने के बाद वापस गाड़ी में आ गए।
लवर्स पॉइंट

 लवर्स पॉइंट से
अब समय था रॉक क्लाइम्बिंग पॉइंट देखने का, लेकिन ड्राइवर ने यहाँ गाड़ी भी नहीं रोकी, और मुख्य सड़क से हमे इसकी जानकारी देते हुए आगे बढ़ चला। उसके बाद हम एको केव वाले रास्ते से होते हुए वापस रोपवे टिकट काउंटर के पास आ गए। गाड़ी ने जहाँ से शुरुवात करि वही पे खत्म भी। हमने ड्राइवर को पैसे दिए और ड्राइवर ने मुझे अपना कार्ड दे दिया, बोला अगली बार गाड़ी की जरुरत पड़े तो मुझे फ़ोन कर लेना। मैंने उससे ऐसे भी पूछा की होटल का भी देखते हो क्या, पहले तो मना किया फिर कहा जब आओगे तब देख लेंगे।

बिच कही रास्ते से 
करीब ढाई घण्टे में हमारी 6 पॉइंट यात्रा समाप्त हुई। अब करने को कुछ नहीं था तो मैंने मम्मी से पूछा बोटिंग करना है क्या? पता नहीं, मम्मी के मन में क्या आया, मम्मी ने मना कर दिया। वैसे घर से सोच के तो चला था की बोटिंग भी करेंगे लेकिन मम्मी के मना करने के बाद मेरा मन भी बदल गया। कुछ महीने पहले ही मैं अकेले नैनीताल आया था और बोटिंग के मज़े लिए थे तो मुझे अपने मन को समझने में ज्यादा देर नहीं लगी। अब हमे वापस लालकुआं आना था। किस्मत अच्छी थी, हमारा मूड बदलते ही वही पे एक शेयर्ड गाड़ी मिल गयी। अगर वहाँ नहीं मिलती तो हमे टैक्सी स्टैंड (बस स्टैंड के पास) आना पड़ता। कुछ सवारी उसमे पहले से थी तो बस हमारे बैठने भर की देर थी और हमारी वापसी शुरू।

नैनीताल से वापसी 
रास्ते में हमारे आगे एक उत्तराखंड परिवहन की बस चल रही थी। वो टनकपुर जा रही थी, बोर्ड पे तो यही लिखा हुआ था हल्द्वानी-टनकपुर, उस समय मुझे टनकपुर नाम कुछ जाना पहचाना लगा रहा था, शायद कोई फिल्म बनी थी, इसलिए एक फोटो ले ली। बाद में पता चला की माँ पूर्णागिरि मंदिर का रास्ता टनकपुर होते हुए जाता है। वैसे उस बस की रफ़्तार और चलने का तरीका गज़ब का था, बहुत देर तक हमे आगे निकलने नहीं दिया। उस समय मुझे एहसास हुआ की उत्तराखंड परिवहन से ड्राइवर कितनी अच्छी तरीके से पहाड़ो में गाड़ी चलते है। रास्ते में एक जगह रुक के चाय पी और कुछ पकोड़े खाये और फिर काठगोदाम होते हुए हल्द्वानी, फिर वहाँ से लालकुआं। रात में मेरी ट्रैन थी जिससे मैं वापस दिल्ली आ गया।

हल्द्वानी टनकपुर बस 


रात में लालकुआं जंक्शन रेलवे स्टेशन 
ये थी मेरी एक दिन की नैनीताल यात्रा।
समाप्त।