उत्तरकाशी भ्रमण
उत्तरकाशी में बारे में थोड़ी सी जानकारी:
काशी बनारस की ही दूसरा नाम है। काशी अपने आप में बहुत बड़ा नाम है और इसका मुख्य कारण काशी विश्वनाथ मंदिर है जो १२ में एक १ ज्योतिर्लिंग में आता है। लेकिन हम जिसकी चर्चा कर रहे है उसे उत्तर का काशी, उत्तरकाशी कहा जाता है। ये नाम इसलिए भी पड़ा है क्यूंकि यहाँ पे भी काशी विश्वनाथ जी का मंदिर है, मोक्ष प्राप्ति के लिए मणिकर्णिका घाट है। ये उत्तराखंड के गढ़वाल का एक जिला है। ऋषिकेश से लगभग 170 किलोमीटर दूर, ये भागीरथी नदी के किनारे बसा हुआ शहर है। उत्तरकाशी को प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था। कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा। केदारखंड और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए 'बाडाहाट' शब्द का प्रयोग किया गया है। केदारखंड में ही बाडाहाट में विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है। पुराणों में इसे 'सौम्य काशी' भी कहा गया है। हिमालय की सुरम्य घाटी में उत्तरकाशी समुद्र तल से 1158 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
 |
हम तैयार थे उत्तरकाशी भ्रमण के लिए |
पहले भाग में आपने पढ़ा की कैसे मेरा और रोहित का उत्तरकाशी-हरसिल का घूमने का प्लान बना और कैसे हम दिल्ली से उत्तरकाशी आये।
पहला भाग (दिल्ली से उत्तरकाशी ) पढ़ने के लिए
यहाँ क्लिक करें
अब आगे...
होटल में फ्रेश होने के बाद, अब हम तैयार थे उत्तरकाशी भ्रमण के लिए। इकट्ठा की हुई जानकारी के अनुसार उत्तरकाशी में मंदिर और घाट खास है। हमारा अब का प्लान था पहले घाट पे जाना, थोड़ा आस पास घूम के उत्तरकाशी देखना, शाम में मंदिर में दर्शन और बाजार घूमना, 8-8:30 बजे तक वापस होटल आ जाना और रात्रि भोजन 9 बजे से पहले करने का। सुबह से सही से कुछ खाया पिया नहीं था तो भूख भी जोरो से लगी हुई लेकिन ये भी था की अगर ज्यादा खा लिए तो अभी घूम नहीं पाएंगे। समय करीब 4:30 बजे थे, कही दोपहर के खाने का नमो निसान नहीं था, या तो फ़ास्ट फ़ूड खाओ या फिर रात वाले खाने तक का इंतज़ार करो। इसलिए फिर से चौमिन वाले दूकान पे पहुँच गए। वहाँ चौमिन के साथ कोक और मोमो निपटाए। पास में ही बस स्टैंड था तो वहाँ जा के गंगोत्री/हरसिल जाने के बारे में जानकारी इकठ्ठा करि। उसके बाद, मणिकर्णिका घाट की तरफ बढ़ चले। वहाँ सबसे पहले, गंगा मैया को प्रणाम किया और फिर कुछ जल के छींटे हम दोनों ने अपने ऊपर डाले। थोड़ी देर वही रुक के भागीरथी नदी के साथ उत्तरकशी का नज़ारा देखने लगे। वहाँ से नदी के दूसरे तरफ कुछ दुकाने, फिर मकान और फिर ऊचे ऊचे पहाड़। उत्तरकशी का ये नज़ारा भी शानदार हैं। गंगा मैया के बहते हुए पानी की वो मधुर ध्वनि और सामने पर्वतो की श्रृंखला का अविरल नज़ारा आपको एक अलग दुनिया का एहसास करवाती है।
 |
घाट से सामने का नज़ारा |
 |
असीम शांति के कुछ पल |
उत्तरकाशी में 2 झूलते हुए पुल है, एक मणिकर्णिका घाट पे और दूसरा मंदिर के समीप है। हमे इसे पार करके दूसरे तरफ से उत्तरकाशी देखना था। पुल पे पहला कदम रखते हुए ही एहसास हुआ की ये हिल रही है और डर के मारे मेरी हालत ख़राब होने लगी। हिलते हुए पुल पे मुझे बहुत डर लगता है, ऋषिकेश में बहुत पहले भी मेरे साथ ऐसा हो चूका था। उस पल मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी, पुल से होते हुए दूसरी तरफ बढ़ने की। कुछ फोटो तो पुल के शुरुवात में ही लिए। अपने आप को भरोसा और साहस दिलाते हुए फिर से उसपे कदम रखा और आगे चला। पुल करीब 4-5 फ़ीट चौड़ा है और मैं बिलकुल बिच में चल रहा था। पुल के साइड में जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। साथ ही फोटो भी लेना था, रोहित मेरी हालत समझ रहा था या नहीं, मुझे नहीं पता, लेकिन उसके साथ देने के लिए, डर का सामना करते हुए हमने फिर ढेर सारे फोटो लिए। पुल के दूसरे तरफ कुछ दूकान है। दूसरी तरफ से उत्तरकाशी का नज़ारा बिलकुल अलग था। इधर से आपको पूरा उत्तरकाशी नज़र आ जाता है और इसकी चहल पहल भी। वहाँ पे हमे कुछ चाट पकोड़े के दुकान दिखे और हमे गोल गप्पे खाना सही समझा। पहाड़ो में इनका मज़ा कुछ और ही होता है क्यूंकि वहाँ के मसलो में अलग बात होती है।
 |
घाट के पास वाला पुल |
 |
शायद मेरी हालत आप समझ रहे होंगे |
उस समय, उत्तरकाशी में जिओ सिम का कोई फ़ायदा नहीं था। एयरटेल के नेटवर्क से कॉल करना सम्भव था और इंटरनेट अपनी धीमी गति के साथ आँख मिचोली खेलने में व्यस्त रहती। हम दोनों के पास जिओ और एयरटेल दोनों थे और मेरे दोनों सिम में इंटरनेट पैक भी था। जिओ का साथ छूट जाने के कारण रोहित का मानो तो एक हाथ की कट गया था। उसका अपने फ़ोन पे इंटरनेट चलना मुमकिन नहीं था। अब रोहित इंटरनेट के लिए मेरे फ़ोन पे और मेरा फ़ोन नेटवर्क के ऊपर निर्भर था । गोल गप्पे खाने के बाद मेरे फ़ोन पे कुछ नोटिफिकेशन आये, इसका मतलब था की इंटरनेट काम कर रहा है। वहाँ पे मैंने फटाफट सोशल मीडिया से जुड़ के अपना हाल शेयर कर लिया पड़ रोहित नहीं कर सका, कोशिश तो करी लेकिन नेटवर्क ने धोखा दे दिया। (नोट: पहाड़ो बीएसएनएल के नेटवर्क सबसे सही रहते है)
 |
रोहित के साथ अपने डर को छुपाते हुए |
थोड़ा आगे चलने के बाद एक रास्ता NIM की तरफ चला जा रहा था और दूसरा रास्ता घूम के विश्वनाथ मंदिर के तरफ। NIM - नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग, ये पर्वतारोहियों के एक बेहत शानदार इंस्टिट्यूट जहाँ पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण दिया जाता है और यहाँ कुछ मुजियम भी जहाँ आप पर्वतारोहण में इस्तेमाल होने औज़ार और इनका इतिहास देख सकते है। कुछ लोकल लोगो से बातचीत करने पे पता चला की पहाड़ो के ऊपर भी एक मंदिर है, कुटेटी देवी मंदिर, पड़ जाने में थोड़ा समय लगेगा।
शाम का समय और सूर्य देव अपनी लालिमा बिखेरते हुए मानो हमसे ये कह रहा की बेटा तुमसे ना हो पायेगा और हमे उनकी बात समझ आ रही थी। दूसरे झूले पुल से पहले हमे रोड पे पुल बना हुआ मिला। निचे देखा तो मानो जन्नत सा नज़ारा। एक छोटे झरने से बेहता हुआ पानी उस पुल के निचे से गुज़र रही थी जो आगे जा के ये भागीरथी नदी में लीन हो जा रही थी। साइड से हमे निचे तक पहुँचने का रास्ता भी दिखा। हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और बिना कुछ कहे हुए सहमति बन गयी निचे जाने की। निचे उस झरने के पास जाके ऐसा लगा जैसे कोई छोटा सपना पूरा हो गया है। बचपन में जैसे छोटे झरने की तस्वीर अक्सर देखा करते थे आज हम उसे सामने से देख रहे थे। यहाँ छोटे मोटे गोल पत्थरो पे बैठ के खूब सारी फोटो ली। यहाँ हमे अपनी सोशल लाइफ में शेयर करने वाली कुछ बेहतरीन फोटो भी मिली।
 |
हैं ना, शानदार नज़ारा !!! |
 |
इनकी भी तो फोटो निकालनी थी |
वापस ऊपर आने के बाद हम दूसरे झूले पुल के रास्ता ढूंढ़ते हुए आगे बढ़ चले। ये पुल मुख्य सड़क के लेवल से थोड़ी निचे थी और साइड से सीधी नुमा रास्ता निचे उतरने का। फिर से वैसे ही पुल पार करना था और इसपे तो बाइक भी आ-जा रही थी। इसमें डर और भी ज्यादा था क्यूंकि बाइक के गुजरते वक़्त साइड होना पड़ रहा था। थोड़ा फोटो सेशन करते हुए और अपने डर को छुपाते हुए हमने फिर से पुल पार किया और विश्वनाथ मंदिर का रास्ता पूछते आगे चल पड़े। मंदिर के लिए एक रास्ता मुख्य सड़क से और एक रास्ता पीछे की गलियों से। हम, गलियों वाले रास्ते की तरफ से थे।
 |
पुल से रोहित और उत्तरकाशी का नज़ारा |
 |
दूसरे पुल के पास से |
 |
ये हैं दूसरा पुल, और इसमें भी मैं बिलकुल बिच में |
गलियों में मंदिर का कुछ पता नहीं चला और मंदिर से आगे पहुँच के पता करने लगे। एक दुकानदार वाले भैया ने बताया की आप थोड़ा पीछे चले जाओ वहाँ आपको एक गेट दिखेगा उसमे से अंदर जाना, फिर बड़ा सा ग्राउंड मिलेगा, उसमे सीधे चलते जाना, आपको मंदिर मिल जायेगा। इतनी सटीक जानकारी के कोई कैसे गलत जगह पहुँच जाता। हम भी मंदिर की ओर जाने वाली गली पे पहुँच गए। इतने में बारिश की कुछ बूंदे हमारे ऊपर आ के पड़ी। अरे ये क्या? अभी तो मौसम साफ़ था और अभी बारिश, हम तुरंत भागते हुए मंदिर परिशर में पहुँच गए और एक शेड के निचे खड़े हो गए। अब बारिश आपने चरम पे थी और हम दोनों भी थोड़े से भीग चुके थे। परिशर में एक विश्वनाथ जी का मंदिर है और दूसरा शक्ति मंदिर है। शक्ति मंदिर में एक त्रिशूल है जिसके बारे में ये कहा जाता है की आप अपना पूरा दम लगा लोगे तब भी उस त्रिशूल को नहीं हिला पाओगे, लेकिन वही त्रिशूल आप अपने हाथ की कानी ऊँगली से हिलाओगे तो त्रिशूल हिल जाएगी। खैर अभी बारिश जोर से हो रही थी और मात्र 10 फ़ीट आगे जा के प्रणाम करना भी मुश्किल हो रहा था।
 |
शक्ति मंदिर का त्रिशूल |
 |
मंदिर के सामने, बारिश में इंतज़ार |
हम जैसे हीरो घूमने जाने वक़्त रेनकोट या छाता कहा ले जाते है जिसका नुक्सान हमे अब हो रहा था। अब करीब 6 से ज्यादा बज चुके थे। निरंतर इंतज़ार करने के बाद भी जब बारिश कम नहीं हुई तब हम चिंता होने लगी। चिंता इस बात की थी पहाड़ो में 8-9 बजे तक ही खाना मिलता है। उसके बाद सभी दुकाने बंद हो जाती है। इंतज़ार करते करते अब, करीब 7 बज चुके थे। चिंता बढ़ने लगी थी, जैसे बारिश हलकी हुई हमने तुरंत भाग में मंदिर में दर्शन और प्रणाम किया और फिर से शेड में आ गए। अब तो 8 भी बज गए लेकिन इंद्रा देव को हमपे तरस नहीं आ रहा था। अब हमे वापस होटल जाना ही होगा, लेकिन पर्स और मोबाइल दोनों भीग जाने की चिंता। मंदिर में ही शेड के किनारे चलते चलते थोड़ा पीछे जा के देखा तो मुख्य सड़क और कुछ दुकाने दिखी जिनसे बड़ी मुश्किल से एक पन्नी (पॉलिथीन) का जुगाड़ हुआ। हमने अपने मोबाइल उसमे डाले, विश्वनाथ जी को प्रणाम किया और बारिश में निकल पड़े। बंद होती दूकान के बिच से अपने होटल का पता पूछते हुए अपने होटल पहुँच गए। अब खाने की चिंता भी थी और हम दोनों भीगे हुए भी, हमने तुरंत कपडे बदले और आ गए बस स्टैंड वाली सड़क पे। बारिश अब हलकी हो रही थी। वहाँ छोटे मोटे होटल खुले हुए, लेकिन हमे एक "होटल कम रेस्टोरेंट" पसंद आया। मेनू मंगवाया तो कुछ समझ नहीं आया, थाली का पता किया और Rs 80 की प्लेट बताई, हमने 2 प्लेट आर्डर कर दिए। घूमते वक़्त अपना एक ही फंडा है, एक समय जम के खा लो, क्यूंकि बाकि समय का कोई ठिकाना नहीं होता।
हमने होटल वाले से भी पूछा की हरसिल जाने के क्या साधन है। उन्होंने बताया की अभी तो एक बस ही दोपहर में 2 बजे खुलती है जो गंगोत्री तक जाती है या फिर वहाँ से करीब 500 मीटर आगे टैक्सी स्टैंड, वहाँ से आपको शेयर्ड टैक्सी मिल जाएगी। टैक्सी वाले गाड़ी फुल होने के बाद ही निकलते है तो आप कोशिश करना सुबह जल्दी ही पहुंचने की। ऐसी ही कुछ जानकारी हमे शाम में भी कुछ लोगो से मिली थी तो अब ये पक्का था की हमे शेयर्ड टैक्सी ही पकड़नी है। भरपेट खा के हम अपने होटल वापस पहुँचे। करीब 9 बज रहे थे, हमने टीवी चालू किया और टीवी देखने में व्यस्त हो गए। दिन भर का लेखा जोखा करते हुए करीब 10:30 बजे हमने सोने का फैसला लिया और सिर्फ बाथरूम वाली लाइट जला के सोने लगे, सुबह 5 बजे का अलार्म लगा के।
दो दोस्त बहुत दिनों बाद कही पहाड़ो में थे तो बातों का दौर कैसे नहीं चलता। कभी मैं कहता तो रोहित सुनता और कभी रोहित कहता तो मैं सुनता। कुछ पुराणी बातें और कुछ नई, कुछ दिल की बातें तो दिमाग की, 12 कब बज गए, हमे पता ही नहीं चला। अब रोहित ने कहा चुप हो जा, सुबह जल्दी भी उठना है। एक तो नई जगह ऊपर से पहाड़ो की ठण्ड, कम्बल तो थी पड़ नींद नहीं, फिर भी जैसे तैसे सोया। करीब 2 बजे बाद अचानक से नींद खुल गई, अपने फ़ोन को देखा तो पता चला की इंटरनेट आ रहा है और स्पीड भी सही है। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं जैसे किसी अंधे को दोनों आखँ मिल गए हो। मैंने तुरंत अपनी सोशल लाइफ देखने लगा, मतलब फेसबुक से है। फिर नेट चलाते चलाते हरसिल और उसके आस पास की जानकारी देखने लगा।
करीब डेढ़ घंटे के बाद मैंने रोहित को उठाना शुरू किया, ये कह के की नेट चल रहा है, तुझे कुछ करना तो नहीं। एक बार "हुह" कह के फिर से सोने लगा। मैंने दुबारा उसको हिलाया और कहा की भाई नेट की स्पीड सही है, नेट चला ले। ऐसा 3-4 बार हुआ और फिर उसने गुस्से में कहा की सोने देगा की नहीं लेकिन अब उसकी नींद टूट गयी थी। बेचारा, मन ही मन 4-5 गालिया तो मुझे दी ही दी होंगी। हाँ-ना करते हुए उसने भी अपनी सोशल लाइफ को जी लिया। अब जब 4:30 बज रहे थे तो फिर सोने से फ़ायदा नहीं था। होटल रूम के बहार आ के देखा तो असीम शांति थी। पहाड़ो में छोटी मोटी लाइट जलती हुई, सुबह का उजाला जैसे रात की कालिमा को चीरते हुए बढ़ रहा हो। मैंने रोहित को भी बहार गलियारे में आके इस दृश्य को देखने को कहाँ, उसका भी वही हाल था जो मेरा था, शांत और आचम्भित। थोड़ी देर के लिए हम अपने बचपन में चले गए जब हमे इतनी शांति मिलती थी। अब हमने निर्णय किया की नित्य क्रियाओ से होके मणिकर्णिका घाट पे दुबारा जायेंगे और सुबह में कुछ समय गंगा मैया के साथ बिताएंगे।
यात्रा जारी है...
कुछ और तस्वीरें...
 |
बारिश के खत्म होने का इंतज़ार |
 |
शेड के निचे बारिश से बचते हुए |
 |
शक्ति माता मंदिर |
 |
काशी विश्वनाथ मंदिर, शक्ति माता मंदिर से |
 |
रोहित को भी उसी पोज़ में फोटो चाहिए था |
 |
होटल से उत्तरकाशी का नज़ारा
|
Nice......good going...keep it up...all the best
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया
Deleteअच्छा लिखा है । घर बैठे ही उत्तरकाशी के दर्शन । वाह।
ReplyDeleteजी, धन्यवाद। आपको पसंद आया मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।
ReplyDelete